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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

याद के बादल



तुम रूठ गए थे ....
तो जैसे शब्दों ने भी
कुट्टी कर ली थी मुझसे
आंसुओं की तरह आँखों में
उमड़ते तो थे
पर पलकों से ढुलक
गालों पर नहीं गिरते थे
अवरुद्ध था मार्ग
पुतलियों से कंठ तक ..
जैसे कोई सोता हो
फूट पड़ने को बेताब ..
.....
मौसम बरसात का नहीं है ...
पर आज कोई कविता बरसेगी
मन में घुमड़ आए हैं
तेरी याद के बादल .











मुस्कुराहट का रंग



मुस्कुराहटों की उंगली थामे
दर्द को मिश्री सा घोलकर पी लिया

थोड़ा खिलखिला दोगे अगर

तो ख़्वाबों के मेरे कारवां पर

खुशियाँ बरस ही पड़ेंगी

ताज़ादम हो के चलना अच्छा लगेगा न
....

यूँ उदासियाँ न बिखेरा करो

चिपकी रहतीं हैं मन से तब तक

जब तक तुम खुद नहीं उतारते

आँखों का काजल फैलकर

बिखेर देता है अपना रंग
.....

थोड़ा सा मुहब्बत का लाल रंग भी

दे ही जाना अबकी बार

होठों पर सजाकर देखना है मुझे

कि मेरी मुस्कुराहटों में दिखता है क्या

किसी को तुम्हारा रंग
!




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