tag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post3588953640247980955..comments2023-09-24T16:54:52.626+05:30Comments on मन का कैनवस: दर्द की लकीरेंTulika Sharmahttp://www.blogger.com/profile/17357400542674169759noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post-45147084894632575022012-09-23T09:37:48.423+05:302012-09-23T09:37:48.423+05:30ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कै...ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है<br />संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post-19427369565054272652012-09-05T07:47:56.350+05:302012-09-05T07:47:56.350+05:30तुम्हारा लिखा पढ़ने के बाद..खुद जो सड़क पर लिखा था...तुम्हारा लिखा पढ़ने के बाद..खुद जो सड़क पर लिखा था...अच्छा नहीं लगा .<br />मैंने लिखा इतना कुछ पर जब तुम्हारी कविता आँखों के आगे आयी तब लगा कि मैं यही कहना चाह रही थी और इसे न कह पाने के चक्कर में मैंने इतना कागज़ काला किया...<br />मेरा लिखा ....यहाँ इसलिए क्यूंकि ये था हमारा साझा प्रयास ..ए ही विषय को ध्यान में रख कर लिखने का ...मेरी ओर से तुम खूब से मार्जिन से जीती ....<br /><br /><br />सड़क : खत्म हो जाती हैं यकीनन वहाँ <br />तुम मेरा हाथ छोडोगे जहां ..<br />मेरे हमसफ़र !!<br /><br />सड़क : सब पहुँच जाते हैं उससे होकर <br />कहीं न कहीं <br />कभी न कभी <br />वो रह जाती है ,बस <br />वहीं की वहीं .<br /><br />सड़क : थक जाती है सारा दिन <br />लोगों के कोलाहल से <br />सन्नाटा पसरता है <br />चाहती है ये भी <br />कमर सीधी कर के <br />आराम करना .<br /><br />सड़क : बाँट क्यूँ देते हो मुझे <br />डिवाइडर बना कर <br />एक मैं ...<br />दो हिस्से <br />एक ले जाने वाला कहीं <br />एक ले आने वाला वहीं <br /><br />सड़क : पत्थर ,गिट्टी <br />कोलतार ,मिट्टी <br />रोड रोलर से दबा दिए <br />तब भी उभर उभर आती है <br />गिट्टियां ..<br />संग चली आती हैं <br />चप्पल में चिपक कर <br />तेरी याद सी ढीठ है <br />ये गिट्टियां भी .<br /><br />सड़क : हादसों को रोज़ देखती हैं <br />खून और आंसू समेटती हैं <br />जब भीड़ तमाशबीन होती है <br />चाहती है...काश <br />मोबाइल जो वहाँ गिरा है <br />उसे उठा मरने वाले के <br />किसी दोस्त को फोन लगा दे.<br /><br />सड़क : रेगिस्तान की <br />सारे समय <br />रेत से ढकी <br />अपने किनारों को ढूँढती सी <br />जो खो गए रेत में .<br />पर ,वो खुश है रेत में यूँ गुम होकर . <br /><br />सड़क:मानचित्र में <br />कहाँ है वो सड़क <br />जो तुम्हें मुझ तक लाएंगी .<br />उसके बाद मानचित्र की सारी सडकें <br />गायब हो जाएँ ,बस .<br /><br />सड़क: तुम इनसे ही गए हो दूर <br />मेरे लिए ये हाथ की <br />वो काली रेखा है <br />जो मेरी पत्री से <br />ज़मीन पे उतरी है .Nidhihttps://www.blogger.com/profile/07970567336477182703noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post-53764500246577130042012-09-03T16:36:28.361+05:302012-09-03T16:36:28.361+05:30सड़क तो वहीं रहती है ... हां मुसाफिर जरूर चलते हैं...सड़क तो वहीं रहती है ... हां मुसाफिर जरूर चलते हैं उसपे और जाते हैं अपने गंतव्य तक ... सड़क तो उनके मुहाने जा के भी स्थिर ही रहती है ..<br />भावमय रचना है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post-79795511623207661172012-09-02T23:26:17.390+05:302012-09-02T23:26:17.390+05:30sundar bhav
badhai.
mere navimtam 2 rachnaye aap...sundar bhav <br />badhai.<br /><br />mere navimtam 2 rachnaye aapki pratksha me hai.padhareकालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post-6856904734103647172012-09-02T19:52:21.536+05:302012-09-02T19:52:21.536+05:30बहुत सुन्दर भाव है आपकी रचना का ..........बहुत सुन्दर भाव है आपकी रचना का ..........Dr. sandhya tiwarihttps://www.blogger.com/profile/15507922940991842783noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8369478421387942949.post-55591861404356138482012-09-02T18:04:39.464+05:302012-09-02T18:04:39.464+05:30वाह....
बहुत सुन्दर..
अनु वाह....<br />बहुत सुन्दर..<br /><br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.com