"एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में ..... झरते हैं कुछ रंग ....घुलती हैं कुछ भावनाएं ..सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न ...यही है ..मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग "
बुधवार, 5 दिसंबर 2012
शनिवार, 1 दिसंबर 2012
नींद और जाग के बीच
जब तुम
सियाह रातों में
तकदीर के उजले सफ़हों पर
सुनहरी ख़्वाब लिखना
तो तुम्हारी जाग बनकर
निहारूंगी तुम्हारे सपनों के खाके
भर दूंगी अपने वो रंग सारे
जो होंगे तुम्हारी आकांक्षाओं से
चटख और गहरे..
जब तुम ख़्वाबों को उड़ान देना
तो जोड़ दूंगी अपने भी पंख,
बौनी सी ताक़त,
और अदम्य हौसला ..
जो दम लेंगे वहीं,
जहाँ बैठ तुम्हारे ख़्वाब सुस्तायेंगे ...
सुबह होने से ठीक पहले
जब तुम
थक जाओ
तो तुम्हारी पलकों में
वापस आऊँगी नींद बनके
और घुल जाऊंगी ज़ुबान पर
मिठास बनके
कि भोर हो जब
तो देख सकूं तुम्हारे साथ
एक उजला मीठा ख़्वाब
शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
याद के बादल
तुम रूठ गए थे ....
तो जैसे शब्दों ने भी
कुट्टी कर ली थी मुझसे
आंसुओं की तरह आँखों में
उमड़ते तो थे
पर पलकों से ढुलक
तो जैसे शब्दों ने भी
कुट्टी कर ली थी मुझसे
आंसुओं की तरह आँखों में
उमड़ते तो थे
पर पलकों से ढुलक
गालों पर नहीं गिरते थे
अवरुद्ध था मार्ग
पुतलियों से कंठ तक ..
जैसे कोई सोता हो
फूट पड़ने को बेताब ..
.....
मौसम बरसात का नहीं है ...
पर आज कोई कविता बरसेगी
मन में घुमड़ आए हैं
तेरी याद के बादल .
अवरुद्ध था मार्ग
पुतलियों से कंठ तक ..
जैसे कोई सोता हो
फूट पड़ने को बेताब ..
.....
मौसम बरसात का नहीं है ...
पर आज कोई कविता बरसेगी
मन में घुमड़ आए हैं
तेरी याद के बादल .
मुस्कुराहट का रंग
मुस्कुराहटों की उंगली थामे
दर्द को मिश्री सा घोलकर पी लिया
थोड़ा खिलखिला दोगे अगर
तो ख़्वाबों के मेरे कारवां पर
खुशियाँ बरस ही पड़ेंगी
ताज़ादम हो के चलना अच्छा लगेगा न ....
यूँ उदासियाँ न बिखेरा करो
चिपकी रहतीं हैं मन से तब तक
जब तक तुम खुद नहीं उतारते
आँखों का काजल फैलकर
बिखेर देता है अपना रंग .....
थोड़ा सा मुहब्बत का लाल रंग भी
दे ही जाना अबकी बार
होठों पर सजाकर देखना है मुझे
कि मेरी मुस्कुराहटों में दिखता है क्या
किसी को तुम्हारा रंग !
दर्द को मिश्री सा घोलकर पी लिया
थोड़ा खिलखिला दोगे अगर
तो ख़्वाबों के मेरे कारवां पर
खुशियाँ बरस ही पड़ेंगी
ताज़ादम हो के चलना अच्छा लगेगा न ....
यूँ उदासियाँ न बिखेरा करो
चिपकी रहतीं हैं मन से तब तक
जब तक तुम खुद नहीं उतारते
आँखों का काजल फैलकर
बिखेर देता है अपना रंग .....
थोड़ा सा मुहब्बत का लाल रंग भी
दे ही जाना अबकी बार
होठों पर सजाकर देखना है मुझे
कि मेरी मुस्कुराहटों में दिखता है क्या
किसी को तुम्हारा रंग !
सोमवार, 29 अक्टूबर 2012
संदेसे
हवाओं पर रख दिए थे
भीगे हुए से कुछ स्वर
और बता दिया था
उसके कानों का पता भी
जैसे पता ही था तुम्हें
कि स्वर का अनुनाद
इतने गहरे निशान छोड़ेगा
कि कालखंडों के बीतने पर भी
ह्रदय पर अंकित रहेंगे
स्वर के जीवाश्म
दरिया के पानियों पर
उसने भी रख दिए थे
प्रतीक्षा के दो आंसू
जैसे मालूम था उसे
दरिया का रास्ता
समंदर तक
और तय करनी थी उसे ही
समन्दर में नमक की सांद्रता
कि इससे ठीक पहले
मीठा था समन्दरों का भी पानी .
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