लड़की कस के पकड़ लेती
उँगलियों में अपना ब्रश
सारे गहरे रंग समेट ..
ब्रश की नोक पर लगा लेती.
हवा में हाथ उठाती
रंग छिड़कती ..कोशिश करती
कुछ खींचने की ..कुछ आंकने की ..
आड़ी तिरछी लकीरों में घुले रंग
कोई आकार लें..उससे पहले
लड़का अपने हाथ हवा में उठाता
सारे रंग समेट लेता
अपनी हथेलियों में ..
सिद्धहस्त जादूगर की तरह
रंगों का दरिया वापस बहा देता....
क्षितिज के एक कोने से दूसरे कोने तक
बिखर जाते रंग ...इन्द्रधनुष से
कुछ देर दोनों जादू बुनते ....
पर रंग तो दिखाई देते हैं न रोशनी में ..
वो उठकर रोशनी का स्विच बंद करना चाहती
पर उंगलियां फिर रंग में डूब जातीं ....
तब से उसने आँखें बंद की हुई हैं
उसकी आँखों में बंद है एक इन्द्रधनुष ...
जबकि लड़के के हाथ
अब भी उठे हैं ...
दुआएं बिखेर रहे हैं !
वाह!!!
जवाब देंहटाएंकुछ देर दोनों जादू बुनते ....
पर रंग तो दिखाई देते हैं न रोशनी में ..
वो उठकर रोशनी का स्विच बंद करना चाहती
पर उंगलियां फिर रंग में डूब जातीं ....
बेहद खूबसूरत................
बधाई तूलिका जी.
अनु
बहुत शुक्रिया अनु
हटाएंक्षितिज के एक कोने से दूसरे कोने तक
जवाब देंहटाएंबिखर जाते रंग ...इन्द्रधनुष से
कुछ देर दोनों जादू बुनते ....
पर रंग तो दिखाई देते हैं न रोशनी में ..
वो उठकर रोशनी का स्विच बंद करना चाहती
पर उंगलियां फिर रंग में डूब जातीं ....
एक स्वप्निल रंग
आभार रश्मि जी ...ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
हटाएंउसकी आँखों में बंद है एक इन्द्रधनुष ...
जवाब देंहटाएंवाह ...बेहतरीन भाव
सदा जी बहुत शुक्रिया
हटाएंतूलिका.......एक बारगी तो लगा कि जैसे ये निराशा और टूटन की कविता होगी लेकिन अंत तक पहुँचते हुए मुझे इसमें एक मासूम आशावाद दिखा.......रंग उड़े नहीं, निरर्थक नहीं हुए........एक ने रंगों को क्षितिज तक फैला दिया तो दूसरा उसे समेट कर रंगों का दरिया बहा देता है.........
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से निबाहा है आपने रंगों की इस छुपम-छुपाई को......बहुत बधाइयाँ....
रंग कभी हमसे खेलते हैं और कभी हम रंगों से खेलने लगते हैं ...बस यही धूपछांव चलती है ज़िन्दगी भर ....शुक्रिया पसंद करने के लिए
हटाएंउसकी आँखों में बंद है एक इन्द्रधनुष ...बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुषमा जी शुक्रिया
हटाएंबहुत खूब ... आँखों के इस इन्द्रधनुष कों संभाल के रखना ... जीवन में कई बार रंगों की कमी आ जाती है ...
जवाब देंहटाएंआँखों के इस इन्द्रधनुष को संभाल कर ही रखा है दिगंबर जी .....शुक्रिया पसंद करने के लिए
हटाएंउसकी आँखों में बंद है एक इन्द्रधनुष ...
जवाब देंहटाएंजबकि लड़के के हाथ
अब भी उठे हैं ...
दुआएं बिखेर रहे हैं !
सुंदर भोली रचना...
सादर।
जी बहुत धन्यवाद
हटाएंक्या बात!!!!!.......बढ़िया
जवाब देंहटाएंअना जी शुक्रिया
हटाएंक्षितिज के एक कोने से दूसरे कोने तक
जवाब देंहटाएंबिखर जाते रंग ...इन्द्रधनुष से
कुछ देर दोनों जादू बुनते ..........और बुनते एक खूबसूरत ,मीठी लुभावनी अर्थवान कविता | सुंदर लिखा छोटी |
भैया ! आपकी टिप्पणी हमेशा मुझे उत्साहित करती है ...शुक्रिया
हटाएंलड़का अपने हाथ हवा में उठाता
जवाब देंहटाएंसारे रंग समेट लेता
अपनी हथेलियों में ..
सिद्धहस्त जादूगर की तरह
रंगों का दरिया वापस बहा देता....
क्षितिज के एक कोने से दूसरे कोने तक
बिखर जाते रंग ...इन्द्रधनुष से
कुछ देर दोनों जादू बुनते ....(सुन्दर है तेरी कल्पना के रंग !!)
पता है तूलिका ...जादू अपने आप में कितना मन को मोहने वाला होता है जबकि हमें पता होता है कि यह छलावा है...मन का भरम है ..तब भी साथ हों तो वो जादू बुनना...झूठ का महल बनाना कितना सुखकर होता है .
बंद आँखों का इन्द्रधनुष ...यूँ ही बना रहे
दुआएं यूँ ही बरसती रहें ...तुम पर .
रहमतों की बरसात होती रहे .....
जादू तो ऊपर वाला बुनता है ...हम तो जीवन भर उनमें रंग भरने की कोशिश करते रहते हैं ....हाँ! रहमतों को समेट लेना चाहती हूँ झोली भर के
हटाएंशुक्रिया यशवंत जी
जवाब देंहटाएंआपके लेखनी बहुत खूबसूरत और सटीक होती है..वैसा ही कुछ यहाँ भी है..
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