लड़की कस के पकड़ लेती
उँगलियों में अपना ब्रश
सारे गहरे रंग समेट ..
ब्रश की नोक पर लगा लेती.
हवा में हाथ उठाती
रंग छिड़कती ..कोशिश करती
कुछ खींचने की ..कुछ आंकने की ..
आड़ी तिरछी लकीरों में घुले रंग
कोई आकार लें..उससे पहले
लड़का अपने हाथ हवा में उठाता
सारे रंग समेट लेता
अपनी हथेलियों में ..
सिद्धहस्त जादूगर की तरह
रंगों का दरिया वापस बहा देता....
क्षितिज के एक कोने से दूसरे कोने तक
बिखर जाते रंग ...इन्द्रधनुष से
कुछ देर दोनों जादू बुनते ....
पर रंग तो दिखाई देते हैं न रोशनी में ..
वो उठकर रोशनी का स्विच बंद करना चाहती
पर उंगलियां फिर रंग में डूब जातीं ....
तब से उसने आँखें बंद की हुई हैं
उसकी आँखों में बंद है एक इन्द्रधनुष ...
जबकि लड़के के हाथ
अब भी उठे हैं ...
दुआएं बिखेर रहे हैं !