सुनो
ज़रा डोर थामो ना
पतंग की तरह
आसमान मे उड़ना चाहती हूँ.
सूरज के पास जा
पूछना चाहती हूँ ..
क्यों दबाए हो सीने मे
इतनी आग?
किसके विरह मे जल रहे हो
सदियों से....?
बादल भटकती रूह से
दिखाई देते हैं मुझे
उन्हें सहलाकर..उनके दर्द को
महसूस करना चाहती हूँ.
सीखना चाहती हूँ उनसे
कि कैसे चल पाते हैं वो
लेकर इतने आँसू?
दौड़कर हवा को
पकड़ लेना चाहती हूँ
ये पूछने को.. कि
किसकी छुअन से महक गयी है
..बावरी हो गयी है.
दूर देस से आए
पंछियों से भी काम है
थोड़ी सी प्रेम की उष्मा
भिजवानी है परदेसी तक
कि उसकी बर्फ बनी संवेदनाएँ
पिघल सकें.
मन के चरखे पर
अनवरत...यादों का धागा
कातने का हुनर
चाँद से सीखना है मुझे.
आसमान के दरवाज़े पर
गुज़ारिश की एक
चिट्ठी भी रखनी है
कि मुझे तकते हुए देखे
तो एक सितारा गिरा दे
और मैं माँग सकूँ
........अपनी चाहत ||
आसमान के दरवाज़े पर गुज़ारिश की एक चिट्ठी भी रखनी है...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है. बधाई.
KC आपकी बेवजह सी बातों सी....मेरी गुज़ारिशों की चिट्ठियाँ भी बहुत सी हैं.........पसंद करने का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंदूर देस से आए
जवाब देंहटाएंपंछियों से भी काम है
थोड़ी सी प्रेम की उष्मा
भिजवानी है परदेसी तक
कि उसकी बर्फ बनी संवेदनाएँ
पिघल सकें.
इन पंक्तियों का सच ..बहुत ही गहरे उतर गया..नमन आपकी लेखनी को ...।
संजय जी नवाजिश
हटाएंबहुत खूबसूरत तूलिका...
जवाब देंहटाएंहर ख्वाहिश पूरी हो...
अनु
बहुत अच्छी कविता है। इसी संदर्भ में इसे भी पढ़िये...
जवाब देंहटाएंhttp://www.facebook.com/devendra.pandey.188?sk=notes