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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

मन की सीपियाँ

















मन की सीपियों में
कुछ कमी सी

कसकती रही

रेत कनों की तरह
..
और यादें

लगाती रहीं अनवरत

चमकीले वरक

रेत के उन कनों पर
...
जीवन सागर के

तेज़ थपेड़े

करते रहे पूरी कोशिश

फेंक देने को सीपियाँ

अपरिचय के

अनजान द्वीपों पर
...
वक्त की लहरों ने भी

अतल गहराइयों में डुबोया

बार बार पटका

कठोर चट्टानों पर
...
लेकिन सीपियों ने

अब भी

बचा रक्खे हैं

याद के चमकीले मोती

अपने अंतस में

सुरक्षित
!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. और पिरो लिए हैं वो मोती मैंने एक हार में...और गले से लगाए फिरती हूँ इत्-उत..............

    यादें सच्ची फुल्ली shockproof होती हैं...

    Anu

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  2. यार...अच्छी ,प्यारी सी.....कविता.यादों के मोतियों को सब विषमताओं के बाद भी सहेजती.सरल मन की अभिव्यक्ति.
    तुम्हारा वही गुण...सिलसिलेवार बहना...शब्दों का...बिना किसी व्यवधान के ,इसमें भी दिख रहा है.
    तूलिका,रेत कणों की कसक और रगड़ ज़रूरी है...यादों के वरक....तेज थपेड़े.....कठोर उठापटक यह सब उन लोगों के हाथ आनी ही है...जो हिम्मत नहीं करते.या तो पहले सब झेल लो या फिर बाद में यूँ झेलो.
    मोती पाने के लिए इतना मोल तो चुकाना ही पडेगा न.

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  3. कलकत्ता की दुर्गा पूजा - ब्लॉग बुलेटिन पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को दुर्गा पूजा की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें ! आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. मोती की चमक की रक्षा के लिए सीपी को चोट सहना पढता है

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  5. फिर भी सीपियों ने बचा ही लिया यादों के खुबसुरत मोतियों को..बहुत सुन्दर तुलिका जी..पहली बार आई आप के ब्लांग मे एक नायाब मोती को पालिया..आभार..मेरे ब्लांग में भी आप का स्वागत है...

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  6. वाह .. .बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तु‍ति

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  7. बड़ी मुश्किल से ढलते हैं हैं ये मोती !

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