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मंगलवार, 31 जनवरी 2012

सुनहरे लम्हे

अबकी बार आओ........
तो अपना male ego वाला कोट
उतार कर आना...........
वो रहता है ना तुम्हारे कांधे पर
तो मैं तुम्हारे दिल तक
नहीं पहुँच पाती.........

हाँ! दार्शनिक अंदाज़ का
वो अपना sun glass भी मत लगाना
क्योंकि मैं तुम्हारी आँखों में....
पढ़ना चाहती हूँ ........
तुम्हारा प्यार.

भूलना मत....
कलाई पर बाँध आना
वो बड़ी वाली .. सुनहरी घड़ी
शायद हम कुछ बड़े,
और सुनहरे लम्हे जी लें
............इसी बहाने ||

2 टिप्‍पणियां:

  1. वो बड़ी वाली .. सुनहरी घड़ी
    शायद हम कुछ बड़े,
    और सुनहरे लम्हे जी लें
    ............इसी बहाने ||
    भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति. रचना के माध्यम से सटीक बात ...आभार

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