कितने ही ख्वाबों को
यादों की जिल्द लगा
पलकों की कोरों पर
करीने से सहेजा है ...
जैसे अलमारी में
किताबें सजाता है कोई .
कितने ही ख्वाबों को
ताकीद की गिरह से बाँध
मन के खूंटे से
बाँध दिया है कस के ...
जैसे पगहे में
गाय बांधता है कोई .
कुछ सुर्ख-सियाह ख्वाब
ऐसे भी हैं बेचारे
जिन्हें हरदम बुनती रहती हूँ ..
जैसे ऊन सलाई और फंदों से
डिज़ाइन बुनता है कोई .
कुछ ख्वाबों को डालकर
अक्सर भूल जाती हूँ
तकिये के नीचे ..
चादर की तहों में ..
राशन की रसीदों की पीठ पर
या डायरी के पन्नों में .
कुछ चलते ही रहते हैं
फिल्म की तरह आँखों में
बिना इंटरवल ब्रेक के ...
कुछ डेली सोप की शक्ल
अख्तियार कर लेते हैं ...
रोज आते हैं, बिला नागा
तयशुदा वक्त पर दस्तक देने .
मेरी आँखों में
ख्वाबों का recurring deposit है
ऊपर वाला इन खातों पर
maturity date डालना
भूल गया है .
मेरी आँखों में
जवाब देंहटाएंख्वाबों का recurring deposit है
ऊपर वाला इन खातों पर
maturity date डालना
भूल गया है .
बहुत खूब......
................................
जी पूनम ...मेर सपने बैंक में जमा हैं ..सराहना का शुक्रिया
हटाएंतुलिकाजी बहुत सुन्दर लिखा है आपने ....हर ख्वाब की अपनी तासीर है ...हर पंक्ति सजी हुई ...बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसरस जी आपकी सराहना संबल है मेरा ..शुक्रिया
हटाएंकल 31/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
उत्साहित करने का ये तरीका अच्छा लगा यशवंत जी ..अत्यंत आभार
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं?
हटाएंतूलिका....क्या गज़ब लिखती हो...बहुत अच्छा लगा ,पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंयार... ख़्वाबों को करीने से सहज के रखना ...उम्मीद भी जिंदा रखना कि आज नहीं तो कल पूरे ज़रूर होंगे .
ताकीद मत दिया करो न.....प्लीज़....पता है अभी तेरे सारे ख्वाब मुझसे कह कर गए हैं कि हमारी सिफारिश कर दीजिए न...कि बांधें न,हमें.
सुर्ख और सियाह ख्वाब.....इनके लिए कुछ नहीं कहूँगी...बुनती रहो....फिर पहन लेना एक दिन इन्हें ही .
कुछ ख्वाब जो इधर-उधर रख भूल जाती हो...उनकी वजह से ही तो हमें कवितायें मिलती हैं..हैं न ?
रोज वाले ख़्वाबों की तो आदत है,तुम्हें...उनके बिना गुजारा भी तो नहीं है .
maturity date ..?पक्का होगी...इस जनम नहीं तो अगले जनम की होगी..होगी ज़रूर...यकीन मानो....दोस्तों की दुआएं कभी तो काम आयेंगी.
मेरी जान तेरी सिफारिश की चिठ्ठी पहुँच गयी मेरे पास ...विचार करूंगी ....सुर्ख सियाह ख्वाब तो ओढ़े रहती हूँ हमेशा ..अधूरे बुने है तो क्या हुआ ......पूरी लालबुझक्कड़ हो! सच ही है मेरी कवितायें मेरे ख्वाब ही हैं ..और मैं इनसे मुहब्बत करती हूँ बेइंतहा (ये भी जानती हूँ कि मुहब्बत कभी पूरी नहीं होती )...दुआ तो तुम अगले जनम के लिए ही करो यार :) ....इत्ते सारे ख्वाब अगले जनम में पूरे जो होंगे तो मैं तो मालामाल हो जाऊंगी
हटाएंमेरी आँखों में
जवाब देंहटाएंख्वाबों का recurring deposit है
ऊपर वाला इन खातों पर
maturity date डालना
भूल गया है .
खुदा करे यह recurring खत्म न हो ...अजीब लगा होगा न तुम्हें यह सुनकर लेकिन प्यारी दोस्त , यह ख्वाब हैं तो हम जिंदा हैं जिस दिन यह आँखों से चले गए खुदा जाने वो ज़िंदगी फिर क्या होगी ..... ज़िंदगी होगी भी या नहीं ....बस इन्हे पूरा करने का जतन जारी रखो .... बहुत भाई तुम्हारी यह कविता ... दिल के बहुत करीब
बदले में तुम्हे भी खूब सारा प्यार ...हाँ मेरे ख्वाबों के recurring deposit में किस्त रोज भरी जाती है ....बस यूँ ही दिल के करीब रखना मुझे भी
हटाएंमेरी आँखों में
जवाब देंहटाएंख्वाबों का recurring deposit है
ऊपर वाला इन खातों पर
maturity date डालना
भूल गया है .
ये अंदाज़ बहुत भाया!!
शुभकामनाएं
मधुरेश जी अत्यंत आभार
हटाएंवाह! बहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंरिकरिंग डिपासिट... मेच्युरीटी डेट...
नए बिम्ब... वाह!
सादर।
बिम्बों की सराहना का शुक्रिया हबीब साहब
हटाएंमेरी आँखों में
जवाब देंहटाएंख्वाबों का recurring deposit है
ऊपर वाला इन खातों पर
maturity date डालना
भूल गया है .
....बहुत खूब ! लाज़वाब अहसास...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
शुक्रिया कैलाश जी
हटाएंexcellent...excellent........
जवाब देंहटाएंthis is my first visit to ur blog.........
loved this poem....
following you......hope to see more of ur creations...
regards
anu
आपको अच्छा लगा है तो अब इस गली इस डगर आते रहियेगा
हटाएंbehad khoobsoorat Khayalonyukt prastuti..!!
जवाब देंहटाएंआभार ब्रिजेन्द्र जी
हटाएंbahut khoob....
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया
हटाएंकितने ही ख्वाबों को
जवाब देंहटाएंताकीद की गिरह से बाँध
मन के खूंटे से
बाँध दिया है कस के ...
जैसे पगहे में
गाय बांधता है कोई .
क्या बात है .........बहुत सुन्दर
जी शुक्रिया ...ख्वाब हमेशा सुन्दर ही होते हैं
हटाएंकुछ ख्वाबों को डालकर
जवाब देंहटाएंअक्सर भूल जाती हूँ
तकिये के नीचे ..
चादर की तहों में ..
राशन की रसीदों की पीठ पर
या डायरी के पन्नों में .
मेरी आँखों में
ख्वाबों का recurring deposit है
Wah...bahut sundar, bahut khoob
धन्यवाद प्रकाश जी
हटाएंकितने ही ख्वाबों को
जवाब देंहटाएंताकीद की गिरह से बाँध
मन के खूंटे से
बाँध दिया है कस के ...
जैसे पगहे में
गाय बांधता है कोई .............वाह अदभुत पंक्तियाँ !ख्वाबों की बुनाई तारीफ़ ए काबिल है तुलिका ..:)
सरोज दी ..ये पंक्तियाँ जो आपने कोट कीं ..मेरे दिल के काफी करीब हैं ..शुक्रिया सराहना का
हटाएंबहुत खूब लिखा है | ख्वाब racurring deposit हो सकता है अच्छी कल्पना है |
जवाब देंहटाएंआशा
पसंद करने का शुक्रिया आशा जी
हटाएंबहुत खूब ... ख्वाबो का रिकरिंग डिपोसिट ... नए बिम्ब ले के बुनी है ख़्वाबों की रचना ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबिम्बों की तारीफ़ का शुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंधन्यवाद यशवंत जी
जवाब देंहटाएंsarthak kalpna hae
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया संगीता जी
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