हर बार
एक खोल ओढ़े
एक आवरण लपेटे
करीब आते हो
इस बात से अनभिज्ञ
अनजान
कि ओढ़े हुए मुखौटों के
टाँके कच्चे होते हैं ..
हर बार
उन टांकों को
उधेड़ कर..खोलकर
भीतर झांकती हूँ
सुन्दर खोल में लिपटी
कुरूपता दिख ही जाती है ..
हर बार
इसी वजह से
तुम्हारा अंतस
लौटाया है मैंने
जस का तस ..
इस बार आना
तो आवरण नहीं
अपने अंतस के
भाव लाना ...
टांक दूंगी
भरोसे की
कुछ रंगीन फुन्दनियाँ
निःस्वार्थ प्रेम के
पक्के धागों से ...
तुम्हारे शको-शुबहे
नाराजगियां सारी
काट छांट कर
फेंक दूंगी
कतरनों के ढेर में ...
खुले ज़ख्मों पर
लगा दूंगी कुछ बटन
दर्द की उधड़ती सीवन
सिल दूंगी फिर से ...
“ प्रेम में दर्जी होने के हुनर का
असर है ये “.
एक खोल ओढ़े
एक आवरण लपेटे
करीब आते हो
इस बात से अनभिज्ञ
अनजान
कि ओढ़े हुए मुखौटों के
टाँके कच्चे होते हैं ..
हर बार
उन टांकों को
उधेड़ कर..खोलकर
भीतर झांकती हूँ
सुन्दर खोल में लिपटी
कुरूपता दिख ही जाती है ..
हर बार
इसी वजह से
तुम्हारा अंतस
लौटाया है मैंने
जस का तस ..
इस बार आना
तो आवरण नहीं
अपने अंतस के
भाव लाना ...
टांक दूंगी
भरोसे की
कुछ रंगीन फुन्दनियाँ
निःस्वार्थ प्रेम के
पक्के धागों से ...
तुम्हारे शको-शुबहे
नाराजगियां सारी
काट छांट कर
फेंक दूंगी
कतरनों के ढेर में ...
खुले ज़ख्मों पर
लगा दूंगी कुछ बटन
दर्द की उधड़ती सीवन
सिल दूंगी फिर से ...
“ प्रेम में दर्जी होने के हुनर का
असर है ये “.
bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संध्या जी
हटाएंकि ओढ़े हुए मुखौटों के
जवाब देंहटाएंटाँके कच्चे होते हैं ..
हर बार
उन टांकों को
उधेड़ कर..खोलकर
भीतर झांकती हूँ
सुन्दर खोल में लिपटी
कुरूपता दिख ही जाती है ..Touching..!!
एप्पी ...मुझे रिश्तों के मुखौटे बिलकुल पसंद नहीं
हटाएंप्रेम में दर्जी???
जवाब देंहटाएंदिल को रफू कर के आराम दे डाला...
बहुत सुन्दर...
अनु
सच है अनु ... दोस्त सच्चे रफ़ूगर होते हैं
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रेम में दर्जी होने के हुनर का
जवाब देंहटाएंअसर है ये............आह ! प्रेम तुम कभी दर्जी बनाते हो कभी बढ़ई | पर कभी नहीं रुकता तुम में खोये लोगों का सृजन |
सच है भैया ! कभी नहीं रुकता... तुम में खोये लोगों का सृजन |
हटाएंतूलिका ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी इस कविता को पढ़ कर अच्छा लगा क्यूंकि हम में से हरेक अपने जीवन में इस तरह के मुखौटे लगाए,आवरण पहने लोगों से मिलते रहते हैं.बिम्ब का कविता के शुरू से अंत तक उसी प्रभाव से मौजूद रहना कविता को प्रभावशाली बनाता है.
तुम्हारे शको-शुबहे
नाराजगियां सारी
काट छांट कर
फेंक दूंगी
कतरनों के ढेर में ...इन पंक्तियों को पढ़ने के साथ ही दिमाग में ,नज़रों के आगे ...दर्जी के पास पड़ा रंग बिरंगी कतरनों का ढेर याद आया .
तूलिका........वैसे सिलाई के इस हुनर का क्रैश कोर्स कर लिया ,यहाँ आकर.सिलाई उधेडना ,बटन टांकना,कच्चे टाँके ,पक्के टाँके ,फुन्दनियाँ,सीवन,काट-छांट ,कतरनों का ढेर,पक्के धागे सब का सब पता चल गया .
प्रेम का हुनर सिखा दो..यह तो अपने आप आ जाएगा .आ जाएगा न?
ये लो मेरा नज़रिया...तूलिका
कुछ लोग अभागे होते हैं
वो जिनके पास होते हैं
या जो इनके पास होते हैं
वो सब के सब
ओढ़े ही रहते हैं मुखौटे
ताउम्र.
उनके आवरणों के टाँके
कच्चे हो भले
पर,उनके मुखौटों के साथ
चेहरे की ,मन की खाल में जज़्ब हो जाते हैं.
नाटक करना ही शगल है जिनका
अंतस के भाव वो कहाँ से लायें ?
ऐसे लोगों का क्या करेगा
तुम्हारा विश्वास ...
तुम्हारा निस्स्वार्थ प्रेम
वो भी रोयेंगे
अपनी किस्मत पे
एक दिन इस्तेमाल करने के बाद
जब फेंक दिया जाएगा
उन्हें ...बेकार समझ
कतरनों के ढेर पर .
तुम अपने लिए सीखना सिलाई का हुनर ...
रखना पक्के धागे तैयार
क्यूंकि जब तुम्हारा यकीं होगा तार-तार
बखिया उखड़ेगी तुम्हारी
तो रखना दर्द सीने की तैयारी .
दोबारा जीने के लिए
भरोसे को सिलने के लिए
ज़ख्मों को छिपाने के लिए
माफी की लेस
बड़प्पन के बटन टांक देना
क्यूंकि जैसे तुम नहीं बदलोगे
वैसे ही वो भी नहीं बदलेंगे,कभी.
प्रेम का हुनर ....तू मुझसे सीखेगी ?....
हटाएं.....समझती हूँ तेरी ये चिंता भी .....
.
जब तुम्हारा यकीं होगा तार-तार
बखिया उखड़ेगी तुम्हारी
तो रखना दर्द सीने की तैयारी .
दोबारा जीने के लिए
भरोसे को सिलने के लिए
ज़ख्मों को छिपाने के लिए
माफी की लेस
बड़प्पन के बटन टांक देना
क्यूंकि जैसे तुम नहीं बदलोगे
वैसे ही वो भी नहीं बदलेंगे,कभी.....
.
पर चिंता न करना दोस्त ....
नकली लोगों को
पास आ कर खुद को छलने नहीं दूंगी ....
नहीं बदलूंगी मैं ...
जैसे नहीं बदलेंगे वो सब ...
..
तेरा नज़रिया मुझे हमेशा अच्छा लगता है ...एक मुकम्मल एहसास ..एक मुकम्मल कविता
आवरण के भीतर प्रेम कहाँ टिकता है ...
जवाब देंहटाएंप्रेम में दरजी हो जाना ...खूबसूरत बिम्ब !
वाणी जी शुक्रिया
हटाएंबहुत खूब ... जूठ का आवरण अंततः उघड़ ही जाता है ... सच जितना भी कडुवा हो पच जाता है ....
जवाब देंहटाएंप्रेम तो वैसे भी सच के साथ ही रहता है ...
ओढ़े मुखौटों से नियत टपकती है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
निःस्वार्थ प्रेम के
जवाब देंहटाएंपक्के धागों से ...
तुम्हारे शको-शुबहे
नाराजगियां सारी
काट छांट कर
फेंक दूंगी
कतरनों के ढेर में ...bahut sundar
mere blog par bhi ek nazar dalen,
टांक दूंगी
जवाब देंहटाएंभरोसे की
कुछ रंगीन फुन्दनियाँ
निःस्वार्थ प्रेम के
पक्के धागों से .............................बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ !!
प्रेम में दर्जी होने के हुनर का
असर है ये ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ओह लाजवाब!!मजा आ गया पढ़कर वाकई!!
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
जवाब देंहटाएं