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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

याद के बादल



तुम रूठ गए थे ....
तो जैसे शब्दों ने भी
कुट्टी कर ली थी मुझसे
आंसुओं की तरह आँखों में
उमड़ते तो थे
पर पलकों से ढुलक
गालों पर नहीं गिरते थे
अवरुद्ध था मार्ग
पुतलियों से कंठ तक ..
जैसे कोई सोता हो
फूट पड़ने को बेताब ..
.....
मौसम बरसात का नहीं है ...
पर आज कोई कविता बरसेगी
मन में घुमड़ आए हैं
तेरी याद के बादल .











12 टिप्‍पणियां:

  1. बाढ़ ही आएगी अब तो.....उसकी यादें भी कोई कम थोड़ी न होंगीं....
    <3

    अनु

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  2. मौसम बरसात का नहीं है ...
    पर आज कोई कविता बरसेगी
    मन में घुमड़ आए हैं
    तेरी याद के बादल .....बहुत बढ़िया

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  3. जब घुमड़ ही आए हैं बादल तो बारिश तो होनी ही हुई ... सुंदर रचना

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  4. बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......

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  5. वाह तुलिका जी कितना प्यार भरा है इन शब्दों में

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  6. आंसुओं की तरह आँखों में
    उमड़ते तो थे
    पर पलकों से ढुलक
    गालों पर नहीं गिरते थे.......बहुत बढ़िया जी

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  7. बहुत सुंदर ..... मेरी पहली टिप्पणी स्पैम में देखिएगा

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  8. कुट्टी अबा का खेल यूँ ही चलता रहे ...:))

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  9. मौसम बरसात का नहीं है ...
    पर आज कोई कविता बरसेगी
    मन में घुमड़ आए हैं
    तेरी याद के बादल


    बहुत सुंदर तूलिका शर्मा जी !

    बहुत अच्छा शब्दचित्र उकेरा आपने …

    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. याद के ये बादल ....कितना कुछ देते हैं....एक नयी कविता का सामान ..नम आँखें ...गुमसुम दिल..तेज सांसें....भरा भरा कंठ....उमडती घुमडती बातों के सिलसिले ....कौंधती प्यार की बिजलियों की सौगातें .
    कह दो न ..इनसे ...न आया करें ..यूँ न छाया करें ...मुझे इनसे कुछ नहीं चाहिए क्यूंकि मुझे तेरी यादें नहीं ...तू चाहिए

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