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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

याद के बादल



तुम रूठ गए थे ....
तो जैसे शब्दों ने भी
कुट्टी कर ली थी मुझसे
आंसुओं की तरह आँखों में
उमड़ते तो थे
पर पलकों से ढुलक
गालों पर नहीं गिरते थे
अवरुद्ध था मार्ग
पुतलियों से कंठ तक ..
जैसे कोई सोता हो
फूट पड़ने को बेताब ..
.....
मौसम बरसात का नहीं है ...
पर आज कोई कविता बरसेगी
मन में घुमड़ आए हैं
तेरी याद के बादल .











मुस्कुराहट का रंग



मुस्कुराहटों की उंगली थामे
दर्द को मिश्री सा घोलकर पी लिया

थोड़ा खिलखिला दोगे अगर

तो ख़्वाबों के मेरे कारवां पर

खुशियाँ बरस ही पड़ेंगी

ताज़ादम हो के चलना अच्छा लगेगा न
....

यूँ उदासियाँ न बिखेरा करो

चिपकी रहतीं हैं मन से तब तक

जब तक तुम खुद नहीं उतारते

आँखों का काजल फैलकर

बिखेर देता है अपना रंग
.....

थोड़ा सा मुहब्बत का लाल रंग भी

दे ही जाना अबकी बार

होठों पर सजाकर देखना है मुझे

कि मेरी मुस्कुराहटों में दिखता है क्या

किसी को तुम्हारा रंग
!




सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

संदेसे

















हवाओं पर रख दिए थे
भीगे हुए से कुछ स्वर
और बता दिया था
उसके कानों का पता भी
जैसे पता ही था तुम्हें
कि स्वर का अनुनाद
इतने गहरे निशान छोड़ेगा
कि कालखंडों के बीतने पर भी
ह्रदय पर अंकित रहेंगे
स्वर के जीवाश्म

दरिया के पानियों पर
उसने भी रख दिए थे
प्रतीक्षा के दो आंसू
जैसे मालूम था उसे
दरिया का रास्ता
समंदर तक
और तय करनी थी उसे ही
समन्दर में नमक की सांद्रता
कि इससे ठीक पहले
मीठा था समन्दरों का भी पानी .


मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

मन की सीपियाँ

















मन की सीपियों में
कुछ कमी सी

कसकती रही

रेत कनों की तरह
..
और यादें

लगाती रहीं अनवरत

चमकीले वरक

रेत के उन कनों पर
...
जीवन सागर के

तेज़ थपेड़े

करते रहे पूरी कोशिश

फेंक देने को सीपियाँ

अपरिचय के

अनजान द्वीपों पर
...
वक्त की लहरों ने भी

अतल गहराइयों में डुबोया

बार बार पटका

कठोर चट्टानों पर
...
लेकिन सीपियों ने

अब भी

बचा रक्खे हैं

याद के चमकीले मोती

अपने अंतस में

सुरक्षित
!!

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