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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

सपनों की फ़सल



चलो !
धरती को अपने सपनों से भर दें .

कुछ सपनों की कश्तियाँ बनाकर
पानी पर ऐसे तैरायें
कि सुलग उठे नदी का सीना
और गर्म भाप बनकर
छा जाएँ सब सपने
आसमान पर बादल बनकर ...

कुछ सपनों को दबा दें
पहाड़ों की बर्फ़ में
कि धूप की आंच से जो पिघलें
तो बह चलें पानियों सा
और बुझा दें प्यास
हरेक मन की ...

कुछ सपने ऐसे भी हों
जो मिट्टी में दब कर भी अँखुआएं
बेल बनकर चढ़ जाएँ ऊंचाइयों पर
या वृक्ष बन इठलायें
शाखों की बाहें खोल
हवा से मिल
फिर बीज हो जाएँ ...

चलो ! 
इन बीजों को बिखेर दें,
एक बार फिर इंतज़ार करें
इस बंजर धरती पर
सपनों की फ़सल का !!




 








4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar sapne ...
    ...inhen ab sach karnaa hai ....
    sundar ahwan ...
    sundar kriti ..!!
    shubhkamnayen ...!!

    जवाब देंहटाएं

  2. कुछ सपनों की कश्तियाँ बनाकर
    पानी पर ऐसे तैरायें
    कि सुलग उठे नदी का सीना
    और गर्म भाप बनकर
    छा जाएँ सब सपने
    आसमान पर बादल बनकर ...फिर बरसे सपने,और हम हम उन सपनों में भीग भीग जाएँ

    जवाब देंहटाएं
  3. सपनें छा जाएँ
    आसमां पर बादल बनकर....
    और किसी बादल पर बनता एक सतरंगा इन्द्रधनुष इशारा करे....कि सपनो के पूरे होने का वक्त आ गया है.....
    :-)

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. तूलिका...बहुत ही प्यारी कविता है.जीवनी शक्ति से भरी हुई.सिंह नाद सा करती हुई कि सपने नहीं मरते...उन्हें मरने भी नहीं देना चाहिए.
    नदी का सीना जब सुलगेगा उसकी भाप से बादल बन कर बरसेंगे ये सपने....कितनी सुन्दर कल्पना है.
    नदी बन कर भी..सबकी प्यास बुझाने ..यही ख़्वाब ....पानी बनेंगे ..धूप की आंच से पिघल-पिघल कर.
    हवा से मिल कर बीज होने के लिए मिटटी के अंधेरों में दबने की प्रक्रिया से भी इन्ही सपनों को गुजारना है.(सुन्दर ...बहुत सुन्दर.)तुम्हारा इंतज़ार ज़रूर पूरा हो...फसल लहलहाए सपनों की .

    मेरा नज़रिया :-((
    सपने तैरेंगे इसकी कोई गारंटी है क्या?
    वो सपनों की कश्तियाँ जो डूब गयीं तो ..
    पहुंचेंगी नीचे गर्त में और रोयेंगी किस्मत पे .

    पहाड़ों की बर्फ में दबा मत देना भूल से
    जम जायेंगे सारे ख़्वाब
    और मिलेंगे सदियों के बाद
    जीवाश्म के रूप में.

    मिटटी में जो दबाओगी न
    यकीन जानो वो भी मिटटी हो जायेंगे
    कुछ भी शेष न बचेगा .
    इस बेदर्द,बेरहम ज़माने में
    किसी सपने को ज़िंदा रहने का कोई हक नहीं है.
    उन्हें देख कर
    टूटने का इंतज़ार करने से कहीं बेहतर है ...
    आँखों में जन्मते ही उनका मर जाना .

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