"एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में ..... झरते हैं कुछ रंग ....घुलती हैं कुछ भावनाएं ..सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न ...यही है ..मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग "
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इन पनीली आँखों में ही तो डूबता उतराता है वो....कैसे सूखने देगा भला..........
जवाब देंहटाएंअनु
इन कतरों को समंदर होने की चाह है अनु
हटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत धन्यवाद यशवंत जी
हटाएंकल 17/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत शुक्रिया ....ज़रूर आऊँगी लिंक पर
हटाएंसपनों की साँसों की डोर न टूटे कभी
हटाएंइनकी ज़मीन न सूखे कभी
हर हाल तुम इन्हें जिलाए रखना
बाक़ी मेरा क्या है
रहूं न रहूं....
हमेशा तेरे लिए ..यही है दुआ .
बहुत सुन्दर रचना .............
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
हटाएंवाह... !!! वाह...!!!
जवाब देंहटाएंसादर।
जी आभार
हटाएंवाह ||
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
बहुत सुन्दर:-)
रीना जी शुक्रिया
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