कभी भोगा है अँधेरे में रहते हुए
सदियों तक रोशनी का इंतज़ार
जैसे भूल गया हो आना सूरज
धरती के इस गोलार्ध में ...
दूसरे हिस्से में रोज़ होतीं हैं सुबहें
रोज़ दिन चढ़ता है ...
रोशन हो जाती हैं वो सारी राहें
जिन पर नेह का मुसाफ़िर
सफ़र जल्दी जल्दी तय करता है
मगर अंधेरो की सारी राहें भी
अंधेरों पर ही ख़त्म होती हैं
नेह की बेलों को बढ़ने के लिए
थोड़ी तो धूप की दरकार होगी
नहीं पहुँचती बेलों की बाहें भी
रोशनी के उस गोलार्ध तक
कि ले सकें थोड़ा ताप, थोड़ी ऊर्जा
अंधेरों में भी जीते रहने के लिए
और बाँधने के लिए मज़बूती से
खंडित अस्तित्व के टुकड़े ...
गले तक अंधेरों में डूबे रहने से
सांस भी नहीं आती ठीक से .......
क्यूँ नहीं निकलता सूरज इस ओर
ये जानते हुए भी कि
धूप से ज़ख्म भी सूख जाते हैं
और उनका गीलापन भी .
थोड़ी तो धूप की दरकार होगी
नहीं पहुँचती बेलों की बाहें भी
रोशनी के उस गोलार्ध तक
कि ले सकें थोड़ा ताप, थोड़ी ऊर्जा
अंधेरों में भी जीते रहने के लिए
और बाँधने के लिए मज़बूती से
खंडित अस्तित्व के टुकड़े ...
गले तक अंधेरों में डूबे रहने से
सांस भी नहीं आती ठीक से .......
क्यूँ नहीं निकलता सूरज इस ओर
ये जानते हुए भी कि
धूप से ज़ख्म भी सूख जाते हैं
और उनका गीलापन भी .
तो चलो न, उस ओर ही चलें................
जवाब देंहटाएं:-)
अनु
पकड़ो ना हाथ अनु :)
हटाएंवाह बहुत खूब ... आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग ने पूरे किए 13 साल - ब्लॉग बुलेटिन – यही जानकारी देते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन तैयार की है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
धन्यवाद शिवम् जी ....ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का
हटाएंक्यों लेना एहसान उस सूरज का जो पक्षपात करता है और सिर्फ एक हिस्से को ही प्रकाश और ताप प्रदान करता है... यों किसी के आश्रित बने रहने और ज़ख्मों के सूखने का इंतज़ार करने से बेहतर है, अपने हिस्से का सूरज स्वयं बनो, स्वयं गढ़ो और साबित कर दो कि गहरे से गहरे अँधेरे से भी सूरज का जन्म होता है!!
जवाब देंहटाएंअच्छे भाव, अच्छी कविता!!
बहुत शुक्रिया सलिल जी ....सच कहा आपने कि गहरे अँधेरे से भी रोशनी का जन्म होता है ....
हटाएंधूप से ज़ख्म सूख जाते हैं .....
जवाब देंहटाएंइसके बाद की स्थिति और ज्यादा तकलीफ भरी
चटख जाता है खुरंट
दर्द करती हैं दरारें .
जब आदत हो गयी हो अँधेरे की
तब थोड़ी सी रोशनी से भी
आँखें चुंधियाने लगती हैं
शरीर वो ताप सहन नहीं कर पाता.
नेह की बेलें .....जिस अँधेरे पनपी हैं
यादों के मजबूत तने का सहारा ले बढ़ी हैं
वैसे ही रहने दो ..
....कुछ की किस्मत में अँधेरे ही होते हैं
उन्हें रोशनी रास नहीं आती .
प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंफुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये