उमर के पूरे आँगन में
बिखरी बेचैनियों को
पकड़ कैसे सकोगे
बहुत फिसलन भरे होते हैं
बेचैनियों के हाथ
पाँव होते हैं मगर इनके ..
टहलती रहती हैं दिल के हर कोने में
और झाडती रहतीं हैं राख ..
बहुत कुछ जलाने के बाद.
बिखरी बेचैनियों को
पकड़ कैसे सकोगे
बहुत फिसलन भरे होते हैं
बेचैनियों के हाथ
पाँव होते हैं मगर इनके ..
टहलती रहती हैं दिल के हर कोने में
और झाडती रहतीं हैं राख ..
बहुत कुछ जलाने के बाद.
लिखा हुआ मिटाने की
भरपूर कोशिश करती हैं ये
घिसने से निकली
रबड़ की बत्तियाँ
पड़ी रहती हैं यहाँ वहाँ
पर किस्मत का लेखा
मिटा कहाँ पातीं हैं कमबख्त !
भरपूर कोशिश करती हैं ये
घिसने से निकली
रबड़ की बत्तियाँ
पड़ी रहती हैं यहाँ वहाँ
पर किस्मत का लेखा
मिटा कहाँ पातीं हैं कमबख्त !
किस्मत का लेखा
जवाब देंहटाएंमिटा कहाँ पातीं हैं कमबख्त !
बिल्कुल सही कहा है आपने ... बेहतरीन भाव
बेचैनियों को पकड़ना क्या , वे तो खुद ऊँगली थाम लेते हैं
जवाब देंहटाएंबेचैनियों को पकड़ना क्या , वे तो खुद ऊँगली थाम लेते हैं
जवाब देंहटाएंकिसी का कहा न तो सुनती हैं
जवाब देंहटाएंन ही मानती हैं ये बेचैनियाँ
एक दिन सोचा है ...
इनको किसी कोने में धर दबोचूं
कान उमेठूं इनके
और पूछ लूँ इनसे
पूरी इस दुनिया में ..
बस,एक मेरा ही दिल मिला है क्या ?
डपट के कहूँ जाओ..
निकलो यहाँ से
मुझे तुम लोगों का साथ नहीं चाहिए
मेरी किस्मत में अगर तनहा रहना लिखा है
तो मुझे खुद भी अकेले रहना अच्छा लगता है.
इसीलिए ..........
प्लीज़.......जाओ न
धक्के देकर निकालना
न ही मुझको रुचेगा
न ही तुमको पसंद आएगा.
तूलिका...ये तरीका आजमाया जाए,क्या?खैर,वो छोडो..मेरी मास्टरनी प्रवृति शायद जोर मार गयी....यहाँ.
तुम्हारा लिखा .....अच्छा है...खासतौर से बेचैनियों के फिसलन भरे हाथ .सच ही है.....डोलती रहती हैं ...इधर-उधर.तुम्हारे लेखन का प्रवाह देखते ही बनता है....हमेशा की तरह .
बेचैन आत्मा ऐसी ही सोच रखती है।
जवाब देंहटाएंकिस्मत कभी कभी अपने आप भी लिखनी पड़ती है ... उसको मेटना तो संभव नहीं पर आसान जरूर हो जाती है ...
जवाब देंहटाएंकिस्मत का लेखा
जवाब देंहटाएंमिटा कहाँ पातीं हैं कमबख्त !
बिल्कुल सही कहा है आपने ... बेहतरीन भाव
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखती हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!