अपरिचय का इतना बड़ा मरुस्थल
कब रच लिया तुमने
कि विदा के समय कह भी न सको
वो तीन शब्द ....
या फिर हाथ पकड़ बस देख लो
गहरी आँखों से नज़र भर ....
कही अनकही तुम्हारी बातों में
जिन शब्दों को सुनने को तरसता है मन
उन शब्दों को कैसे दोष दूं ?
कब रच लिया तुमने
कि विदा के समय कह भी न सको
वो तीन शब्द ....
या फिर हाथ पकड़ बस देख लो
गहरी आँखों से नज़र भर ....
कही अनकही तुम्हारी बातों में
जिन शब्दों को सुनने को तरसता है मन
उन शब्दों को कैसे दोष दूं ?
सदियों की कहानी
लम्हों में कैसे जियें वो
शब्द हैं ....
कोई हम तुम थोड़े हैं
जो हाशियों में सिमट कर भी
पूरी कहानी जी लेते हों ...
लम्हों में कैसे जियें वो
शब्द हैं ....
कोई हम तुम थोड़े हैं
जो हाशियों में सिमट कर भी
पूरी कहानी जी लेते हों ...
शब्दों में इतनी सामर्थ्य कहाँ
वो तो सिर्फ़ तुम्हारे दिल का बोझ
ले आते हैं मुझ तक ...बेआवाज़
काश ! मौन की कोई भाषा होती
तो शायद ये अपरिचय का मरुस्थल
हम पार कर पाते
और कह पाते कि प्रेम शब्दों में नहीं
मन में जिंदा रहता है.....
वो तो सिर्फ़ तुम्हारे दिल का बोझ
ले आते हैं मुझ तक ...बेआवाज़
काश ! मौन की कोई भाषा होती
तो शायद ये अपरिचय का मरुस्थल
हम पार कर पाते
और कह पाते कि प्रेम शब्दों में नहीं
मन में जिंदा रहता है.....
बहुत सुन्दर तूलिका जी...
जवाब देंहटाएंमौन की भाषा होती है मगर समझते सिर्फ परिचित ही हैं....यही तो विरोधाभास है....
अनु
और हम इस विरोधाभास को कितनी ख़ूबसूरती से जीते हैं न अनु ...शुक्रिया प्रशंसा के लिए
हटाएंbahut sundar ............prem man me hi jinda rahta hai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संध्या जी
हटाएंमन में ही प्रेम है और ...मन ही प्रेम का उद्गम है ...!!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें...
जी अनुपमा ...मन में ही संवेदना की नदी प्रवाहित होती है ...
हटाएंआभार
मौन की भाषा को समझने के लिए क्या मौन ही उचित है !
जवाब देंहटाएंमुखर होना सम्पूर्णता के लिए आवश्यक है ...मौन अधूरापन जीता है
हटाएंशुक्रिया वाणी जी यहाँ आने के लिए
maun bhi bhaut kuch kah gaya hai....
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया सुषमा जी
हटाएं"और कह पाते कि प्रेम शब्दों में नहीं
जवाब देंहटाएंमन में जिंदा रहता है....."
yahi vastavic prem hai.Sundar Abhivyakti
Mere blog me bhi padhare.
बहुत आभार
हटाएंआपके ब्लॉग पर भी आती हूँ :)
शुक्रिया यशवंत ....जी :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर...बेहतरीन अभिव्यक्ति.पढ़ आकर लगा कि मौन ही रहूं...कुछ न लिखूं.मौन ही ले जाएगा मेरे दिल की बात तेरे दिल तक .
जवाब देंहटाएंसच..प्रेम मानों में ज़िंदा रहता है...उसे शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती पर तब भी कभी-कभार अच्छा लगता है कि कुछ कहा जाए हौले से...
अपरिचय का मरुस्थल पार करने के लिए केवल शब्द ज़रूरी हों ऐसा भी नहीं..शब्दों के साथ -साथ और भी एहसास चाहिए.मौन की यदि भाषा होती...तो उसको समझने के लिए ,पढ़ने-सुनने के लिए भी पास -पास होना...साथ -साथ होना ज़रूरी होता है.
सदियों की कहानी
लम्हों में कैसे जियें वो
शब्द हैं ....
कोई हम तुम थोड़े हैं
जो हाशियों में सिमट कर भी
पूरी कहानी जी लेते हों ...
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं...हाशियों में सिमट आकर जो पूरी कहानी जीते हैं..उनकी व्यथा बस वही जानते हैं.
मौन की तो बड़ी प्यारी भाषा होती है!कभी कभी शब्दों से ज्यादा ताकतवर मौन होता है!परिचय शब्दों का मोहताज नहीं है मगर एक बार परिचय होने के बाद मौन रह पना भी बड़ा मुश्किल है !
जवाब देंहटाएंउम्दा सोच
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....