वो नज़्म
जो तुम्हारी नहीं है
मगर तुम्हारे होठों
से
दुहराई गयी है बार
बार
और इस तरह
पा ली है उसने
जीने लायक साँसों की
रफ़्तार ...
उसके लफ़्ज़ों के मानी
में
बंधे हैं उन एहसासों
के तार
जिनका एक सिरा
तुम्हारी उँगलियों
से बंधा है
और इस तरह
हो जाती है वो
कठपुतली
तुम्हारे इशारों की
...
धडकनों के सधे कदम
रखती
तय कर रही है वो
दूरियां
साँसों की आवाजाही
से
रफ़्तार देती है
और इस तरह
तय करती है वो
उम्र का लम्बा सफ़र
...
आज उस नज़्म ने
अपनी नब्ज़ पर हाथ
रखा
मद्धम सी उसकी चाल
देखकर
मायूस हो गयी है
कि कैसे तय होगा
ये लम्बा सफ़र ..ये
दूरियां
इस धीमी रफ़्तार से
बहुत खूबसूरत......
जवाब देंहटाएंमगर नज़्म की मौत का जिम्मेवार फिर किसे ठहराएंगे????
अनु
शायद उसकी मुहब्बत को .....शुक्रिया अनु
हटाएंकभी गुलज़ार साहब की नज़्म की परिभाषा पढकर देखिये.. किसी के हाथों में कठपुतली की तरह कैद हो जाना नज़्म की नियति नहीं.. नज़्म तो बहती नदी है जिसे बांधने की कोशिश व्यर्थ है.. बांधा तो सदने लगती है, बहती रही तो जीवंत ..
जवाब देंहटाएंकब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम,
सादे कागज़ पे लिख के नाम तेरा,
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है,
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी!!!
सलिल जी ! वो नज़्म ही क्या जो परिभाषा में ढले ...नज्में अपनी परिभाषा खुद गढ़ती हैं :)
हटाएंउसके लफ़्ज़ों के मानी में
जवाब देंहटाएंबंधे हैं उन एहसासों के तार
जिनका एक सिरा
तुम्हारी उँगलियों से बंधा है
और इस तरह
हो जाती है वो कठपुतली
तुम्हारे इशारों की ...
waah
रश्मि प्रभा जी ...शुक्रिया ब्लॉग पर आने का
हटाएंपहली बार आना हुआ है। कुछेक पोस्ट पढ़ डाले। बाक़ी बाद में। नज़्म ने काफ़ी प्रभावित किया।
जवाब देंहटाएंमनोज जी बहुत शुक्रिया ....अपने बहुमूल्य सुझाव देते रहिएगा
हटाएंमेरी टिप्पणी स्पैम में चली गयी क्या!!
जवाब देंहटाएंसलिल जी ...आपकी टिप्पणी को मुक्त कर दिया है :)
हटाएंbehtreen nazam....
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंkhoobasoorat rachanaa , badhaayi
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत धन्यवाद
हटाएंकोमल अहसास युक्त
जवाब देंहटाएंभावुक करती रचना....
रीना जी आभार
हटाएंआज उस नज़्म ने
जवाब देंहटाएंअपनी नब्ज़ पर हाथ रखा
मद्धम सी उसकी चाल देखकर
मायूस हो गयी है
कि कैसे तय होगा
ये लम्बा सफ़र ..ये दूरियां
इस धीमी रफ़्तार से
...............ati sunder
यशवंत जी आभार आपका ....अभी हलचल पर आना नहीं हुआ ...बस देखती हूँ :)
जवाब देंहटाएंपीयूष जी बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंउसके लफ़्ज़ों के मानी में
जवाब देंहटाएंबंधे हैं उन एहसासों के तार
जिनका एक सिरा
तुम्हारी उँगलियों से बंधा है
और इस तरह
हो जाती है वो कठपुतली
तुम्हारे इशारों की ... :)
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जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
बहुत खूबसूरत.
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