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शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

नज़्म का सफ़र














वो नज़्म
जो तुम्हारी नहीं है
मगर तुम्हारे होठों से
दुहराई गयी है बार बार
और इस तरह
पा ली है उसने
जीने लायक साँसों की रफ़्तार ...

उसके लफ़्ज़ों के मानी में
बंधे हैं उन एहसासों के तार
जिनका एक सिरा
तुम्हारी उँगलियों से बंधा है
और इस तरह
हो जाती है वो कठपुतली
तुम्हारे इशारों की ...

धडकनों के सधे कदम रखती
तय कर रही है वो दूरियां
साँसों की आवाजाही से
रफ़्तार देती है
और इस तरह
तय करती है वो
उम्र का लम्बा सफ़र ...

आज उस नज़्म ने
अपनी नब्ज़ पर हाथ रखा
मद्धम सी उसकी चाल देखकर
मायूस हो गयी है
कि कैसे तय होगा
ये लम्बा सफ़र ..ये दूरियां
इस धीमी रफ़्तार से  

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत......

    मगर नज़्म की मौत का जिम्मेवार फिर किसे ठहराएंगे????

    अनु

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  2. कभी गुलज़ार साहब की नज़्म की परिभाषा पढकर देखिये.. किसी के हाथों में कठपुतली की तरह कैद हो जाना नज़्म की नियति नहीं.. नज़्म तो बहती नदी है जिसे बांधने की कोशिश व्यर्थ है.. बांधा तो सदने लगती है, बहती रही तो जीवंत ..
    कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम,
    सादे कागज़ पे लिख के नाम तेरा,
    बस तेरा नाम ही मुकम्मल है,
    इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सलिल जी ! वो नज़्म ही क्या जो परिभाषा में ढले ...नज्में अपनी परिभाषा खुद गढ़ती हैं :)

      हटाएं
  3. उसके लफ़्ज़ों के मानी में
    बंधे हैं उन एहसासों के तार
    जिनका एक सिरा
    तुम्हारी उँगलियों से बंधा है
    और इस तरह
    हो जाती है वो कठपुतली
    तुम्हारे इशारों की ...
    waah

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रश्मि प्रभा जी ...शुक्रिया ब्लॉग पर आने का

      हटाएं
  4. पहली बार आना हुआ है। कुछेक पोस्ट पढ़ डाले। बाक़ी बाद में। नज़्म ने काफ़ी प्रभावित किया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनोज जी बहुत शुक्रिया ....अपने बहुमूल्य सुझाव देते रहिएगा

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. सलिल जी ...आपकी टिप्पणी को मुक्त कर दिया है :)

      हटाएं
  6. कोमल अहसास युक्त
    भावुक करती रचना....

    जवाब देंहटाएं
  7. आज उस नज़्म ने
    अपनी नब्ज़ पर हाथ रखा
    मद्धम सी उसकी चाल देखकर
    मायूस हो गयी है
    कि कैसे तय होगा
    ये लम्बा सफ़र ..ये दूरियां
    इस धीमी रफ़्तार से
    ...............ati sunder

    जवाब देंहटाएं
  8. यशवंत जी आभार आपका ....अभी हलचल पर आना नहीं हुआ ...बस देखती हूँ :)

    जवाब देंहटाएं
  9. उसके लफ़्ज़ों के मानी में
    बंधे हैं उन एहसासों के तार
    जिनका एक सिरा
    तुम्हारी उँगलियों से बंधा है
    और इस तरह
    हो जाती है वो कठपुतली
    तुम्हारे इशारों की ... :)

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
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    जवाब देंहटाएं

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