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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

तुम्हारी याद













कभी सूने मन का हर कोना
सुखद पलों ....हसीन लम्हों...
सुहानी घड़ियों...से भर जाती है
परिपूर्ण कर जाती है..
और कभी........
आनंद का हर आवरण खींच
पीड़ा के तार कस जाती है
बेशुमार लोगों की भीड़ मे
नितांत अकेला कर जाती है
.......हाँ!...तुम्हारी याद ||

2 टिप्‍पणियां:

  1. यादें....जानलेवा होती हैं.न खुशी में चैन ...न गम में आराम .मुझे लगता है बीता हुआ सुख भी याद आने पे सुख तो कम दुःख ही अधिक देता है..
    यादों का यह संसार...बड़े गज़ब का...सारे हुनर रखता है..अपने में छुपाये हुए .हाँ,पर जब किसी चीज़ का कोई सहारा न हो...कोई उम्मीद न हो..तो ये यादें ही सहारा बन जाती हैं..जीवन काटने के लिए.
    तुमने जो लिखा है...मेरे साथ तो बहुत बार ऐसा होता है कि मैं भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करती हूँ .

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  2. हाँ निधि ! भीड़ में ही अक्सर हम तनहा होते हैं ...तन्हाई में तो यादें होतीं हैं साथ ...मुझे यादों का यही दुशाला पसंद है

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