अभीष्ट हो....ईष्ट हो
प्रेम के पुष्प समर्पित हैं तुम्हें
स्मृतियाँ तुम्हारी प्रदक्षिणा करती हैं
नित अश्रु-जल से आचमन करती हूँ
माटी से तन को.. दिए सा गढ़ती हूँ
नेह की बाती प्रज्वलित है हृदय की अग्नि से
आकाश मे समाहित समस्त ऊर्जा को समेट
श्वास दर श्वास आती जाती प्राण वायु की लय पर
सिमरती हूँ सिर्फ़ तुम्हारा नाम.............
ये मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश
मेरे पंचतत्वों का अर्घ्य समर्पित है तुम्हे
स्वीकार लेना....क्योंकि मैं प्रतीक्षा मे नहीं हूँ
..................................प्रार्थना में हूँ ||
प्रेम के पुष्प समर्पित हैं तुम्हें
स्मृतियाँ तुम्हारी प्रदक्षिणा करती हैं
नित अश्रु-जल से आचमन करती हूँ
माटी से तन को.. दिए सा गढ़ती हूँ
नेह की बाती प्रज्वलित है हृदय की अग्नि से
आकाश मे समाहित समस्त ऊर्जा को समेट
श्वास दर श्वास आती जाती प्राण वायु की लय पर
सिमरती हूँ सिर्फ़ तुम्हारा नाम.............
ये मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश
मेरे पंचतत्वों का अर्घ्य समर्पित है तुम्हे
स्वीकार लेना....क्योंकि मैं प्रतीक्षा मे नहीं हूँ
..................................प्रार्थना में हूँ ||
ये मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश
जवाब देंहटाएंमेरे पंचतत्वों का अर्घ्य समर्पित है तुम्हे
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आपकी भावपूर्ण अध्यात्मिक कविता पढ़ कर बहुत सुकून मिला|
कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें : http://poetrystream.blogspot.com
कविता में प्रेम का भाव ...और प्रेम का ही आध्यात्म है ...पढ़ कर आपको सुकून मिला ..आभार
हटाएंबहुत सुंदर, बधाई
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