बंदनवार लगाया है
सूनापन भरने को
दीवारों पर सजा दीं हैं
शोख रंग की पेंटिंग्स .
हर कोने अंतरे से
वक्त की धूल भी झाड़ दी है
सुख का जो थोडा बहुत
उजला रंग है, उसी से
पोत दीं हैं सब दीवारें
आस का दीप जला
आले पर धर दिया है
कोने की तिपाई पर रखे
गुलदान में भर दिए हैं
सुधियों से महकते
रजनीगन्धा के गुच्छे ......
अधरों पर ओढ़ी है
प्रेम की स्मित
आँखों में इंतज़ार का
अंजन भी आँका है
तुम अंगुलियां फेर सको
इसलिए बालों को छोड़ दिया है
यूँ ही खुला.. निर्बन्ध
सुनहरे बीते लम्हों के मनके
चुनकर बनाया है मुक्ताहार
स्मृतियों के रूपहले रंग से
चमका ली है आरसी
जिसमे खुद को निहारते ही
तुम पढ़ सको
अपने चेहरे पर लिखी
प्रेम की वो इबारत
जिसे झुठलाते आये हो तुम
उपेक्षा का एक गहरा सा
जो दाग था दिल पर
आज उसी को कुमकुम बना
सजा लिया है अपना माथा
और ये जो सुर्ख ओढनी
ओढ़ ली है न मैंने
उसमें छींट बनकर उभर आये हैं
तुम्हारी बातों के फूल .....
सूनापन भरने को
दीवारों पर सजा दीं हैं
शोख रंग की पेंटिंग्स .
हर कोने अंतरे से
वक्त की धूल भी झाड़ दी है
सुख का जो थोडा बहुत
उजला रंग है, उसी से
पोत दीं हैं सब दीवारें
आस का दीप जला
आले पर धर दिया है
कोने की तिपाई पर रखे
गुलदान में भर दिए हैं
सुधियों से महकते
रजनीगन्धा के गुच्छे ......
अधरों पर ओढ़ी है
प्रेम की स्मित
आँखों में इंतज़ार का
अंजन भी आँका है
तुम अंगुलियां फेर सको
इसलिए बालों को छोड़ दिया है
यूँ ही खुला.. निर्बन्ध
सुनहरे बीते लम्हों के मनके
चुनकर बनाया है मुक्ताहार
स्मृतियों के रूपहले रंग से
चमका ली है आरसी
जिसमे खुद को निहारते ही
तुम पढ़ सको
अपने चेहरे पर लिखी
प्रेम की वो इबारत
जिसे झुठलाते आये हो तुम
उपेक्षा का एक गहरा सा
जो दाग था दिल पर
आज उसी को कुमकुम बना
सजा लिया है अपना माथा
और ये जो सुर्ख ओढनी
ओढ़ ली है न मैंने
उसमें छींट बनकर उभर आये हैं
तुम्हारी बातों के फूल .....
इस तरह सज धज कर
तैयार है तन और मन
निहार रही हूँ दरवाज़े को
पर नहीं जोह रही तुम्हारी बाट
क्योंकि पता है ...
तुम नहीं आओगे
इस तरफ कभी .
प्रेम सदैव असाधारण होता है.... क्योंकि पता है तुम नहीं आओगे कभी इस तरफ.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता.
तुम नहीं आओगे इस तरफ कभी ..ये जानते हुए मुहब्बत निभाना असाधारण ही है न KC..
हटाएंपर नहीं जोह रही तुम्हारी बाट
जवाब देंहटाएंक्योंकि पता है ...
तुम नहीं आओगे
इस तरफ कभी ....तुम्हारे इंतज़ार से भी प्रेम है मुझे यह जानते हुए भी कि तुम नहीं आओगे कभी ,तुम्हारा यह इंतज़ार ही तो मेरी रूह का सुकून है ,मेरी ऊर्जा ,मेरी आशा .... बहुत सुंदर लिखा तूलिका
इस चिर प्रतीक्षा से होने वाले प्रेम को तुम पहचान पायी ....अंतहीन इंतज़ार से होने वाली मुहब्बत ...बिना किसी प्रतिकार की आशा के अंतहीन होती है ..आभार
हटाएंयह पता होने पे कि अगला नहीं आएगा...उसकी प्रतीक्षा करना..बाट जोहना ही प्यार है.यह जो तन-मन को तैयार किया गया है..बहुत खूबसूरत लग रहे हैं ,दोनों.खासतौर पे माथे की कुमकुम ..सुर्ख ओढनी की छीटें .
जवाब देंहटाएंबालों को खुला छोडना ...आरसी चमकाना ..कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह देते हैं.
यह कविता कोमल सी है....पढ़ के मन में यही आया कि काश ...जो पता है..वो गलत हो जाए ...इंतज़ार खत्म हो जाये ...वो समक्ष आ के खडा हो जाए .
यही तो मुहब्बत है निधि ...दिल कुछ और कहता है ...दिमाग कुछ और ..जुबां कुछ और ही अफसाना बयान करती है ...वैसे इस कविता के अंत को कुछ यूं भी लिखा है दोबारा से
हटाएंइस तरह सज धज कर
तैयार है तन और मन
निहार रही हूँ दरवाज़े को
ये भी पता है ...
कि तुम नहीं आओगे
इस तरफ कभी
पर भरोसा
इस बात पर भी है
"ना जाने किस भेस में
नारायण मिल जाएँ "