"एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की चाहत में ..... झरते हैं कुछ रंग ....घुलती हैं कुछ भावनाएं ..सिमट जाते हैं कुछ स्वप्न ...यही है ..मन के कैनवस पर तूलिका के शब्द-रंग "
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आज फिर मेरी खामोशियाँ.. तुम्हें छूकर खामोश ही लौट आयी हैं. कितने सवाल कर चुकी हूँ ... कितने उलाहने दे चुकी हूँ ......
तुम्हारे प्रेम सा ही कुछ खुमार है इसमे भी ..... डूब कर इसमे लेकिन तुम और याद आते हो..... बेहतरीन ....
जवाब देंहटाएंरश्मि हार्दिक आभार ...अगर याद आने कि शर्त डूबना है तो सच डूब कर मर जाना बेहतर होगा
हटाएंपीता नही शराब,की सच कह रहा हूँ में,
जवाब देंहटाएंपर चीज़ लाजवाब है,सच कह रहा हूँ में.
सूरत शकल न देखिए, चेहरे पे आब है,
सीने मे उसके आग है,सच कह रहा हूँ में.
बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा है...रोज आकंठ उदासी को पीना...बर्दाश्त करना और ऊपर से मुस्कुराते भी रहना ...यह पीड़ा जो इस पूरी कविता में दिख रही है ....कविता को प्राण दे रही है..प्यार के लाल रंग और रेड वाइन के रंग का साम्य ,अच्छा है.
जवाब देंहटाएंमेरी कविता वहाँ से शुरू होती है जहां तुम्हारी खतम होती है .....
आज मुझे रेड वाइन नहीं पीनी
इसकी खट्टास ..
इसका कमज़ोर नशा
मुझे वो महसूस नहीं करने देगा
जो मैं महसूस करना चाहती हूँ..
वो तल्खी...वो कड़वापन
जो मेरे अंदर भर गया है ..
ये हटा नहीं पायेगा .
मैं चाहती हूँ...
कि...
रम या व्हिस्की के कई पेग
अंदर उतार लूं ..नीट .
और उसकी कड़वाहट
सब काट के रख दे...
मैं फिर से मैं हूँ जाऊं....
सारी कड़वाहट घुल जाए
और नशा ऐसा हो...
जो उतरने का नाम न ले
बिलकुल तुम्हारे प्यार सा...
उसमें डूब के मुझे
और कुछ न याद रहे
हमारे प्यार के अलावा
तुम्हारे नाम के सिवा
रोज आकंठ उदासी को पीना...बर्दाश्त करना और ऊपर से मुस्कुराते भी रहना ...यही जीवन की कला है न निधि ...ऐसा अभिनय जिसे सब लोग हर रोज करते हैं ...जो पीड़ा मैं कविता में दिखाना चाहती थी वो परिलक्षित हुई ...और तुम्हे रेड वाईन का इश्क के सुर्ख रंग के साथ साम्य अच्छा लगा ...इसका आभार ...सबसे ऊपर ...इसके आगे की तुम्हारी कविता लाजवाब है ....कड़वाहट को कड़वाहट से काटने का हुनर खुदा तुम्हे अता करे ...दुआ है
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