सुनो चाँद !
ये टुक सी क्यों लगा रखी है ?
नज़र रखते हो क्या ?
कि कब, कौन, कहाँ, क्यों ..
आया... गया ?
तुम्हें तो पता होगा
कौन सा स्वप्न
किन आँखों को तलाश रहा है .
या फिर ....
सर झुकाए उदास बैठा
कोई ख्वाब ...
किसकी आँखों से झरा है .
कोई अदावत है ....?
या फिर कोई नाराज़गी ?
क्यों नहीं दिखाते
सही राह हर स्वप्न को ..?
बाज़ आ जाओ चाँद
छोड़ दो करना
सपनों की पहरेदारी.
वरना.........
भटकते ख्वाब
आंसुओं की जो लकीर खीचेंगे
उनमे भटक जाओगे
तुम भी ......
नहीं रहोगे तुम भी
किसी के
महबूब .........||
ये टुक सी क्यों लगा रखी है ?
नज़र रखते हो क्या ?
कि कब, कौन, कहाँ, क्यों ..
आया... गया ?
तुम्हें तो पता होगा
कौन सा स्वप्न
किन आँखों को तलाश रहा है .
या फिर ....
सर झुकाए उदास बैठा
कोई ख्वाब ...
किसकी आँखों से झरा है .
कोई अदावत है ....?
या फिर कोई नाराज़गी ?
क्यों नहीं दिखाते
सही राह हर स्वप्न को ..?
बाज़ आ जाओ चाँद
छोड़ दो करना
सपनों की पहरेदारी.
वरना.........
भटकते ख्वाब
आंसुओं की जो लकीर खीचेंगे
उनमे भटक जाओगे
तुम भी ......
नहीं रहोगे तुम भी
किसी के
महबूब .........||
तूलिका ...चाँद का काम यही है ...नज़र रखना ,औरों पर .देखा नहीं है..कितने दाग लिए फिरता है खुद पे,इसीलिए.और ये चाँद किसी के सपनों को क्या राह दिखायेगा ...इसे तो खुद का नहीं पता कि यह ,किसके ख़्वाबों में खुद कहाँ है ...चांदनी के साथ है या रात के .
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है...हमेशा कि तरह.तूलिका,तुम्हारा यह लिखा पढ़ के मेरा भी मन हो आया है कि चाँद पे कुछ लिखूं ...आज तक मेरी कलम इस पे नहीं चली है.
लिखो जान लिखो .....चाँद पर भी लिखो जल्दी.. मुझे तुम्हारा पहलू पढना है ...बड़ा महबूब बना फिरता है ....मगर जानती हो मुझे अब चाँद बेचारे पर दया भी आ रही है ..हीरो बनने के चक्कर में जीरो बन गया है
हटाएंmano kisi jaadu ke desh aa gaya!
जवाब देंहटाएंdaadi naani ke kisson ka desh..... haath badha ke pariyon ke pankh chhu raha mera mann!
badhaayi is jaaduyi sansaar ko bunne ke liye!
अरे बेनामी जी ....मेरे सपनो के जादुई संसार में आपका स्वागत है ..अच्छा लगा आपकी प्रतिक्रिया पढ़ के
हटाएंसुन्दर कवितायें हैं और रोज़ पढ़ने को मिल जाती है... भला और क्या चाहें?
जवाब देंहटाएंKC ..ये पहले की लिखी रखी थी ...ब्लॉग अभी बनाया है इसलिए सब जल्दी जल्दी डाल रही हूँ ...क्यूँ रोज़ मेरा यूँ दस्तक देना अच्छा नहीं लगता क्या ?
हटाएंकम से कम कोई तो है जो तनहा भटकते ख़्वाबों का हमसफ़र है। चाँद तो ख़ुद एकाकी है.. भागा करता है मुए सूरज की रोशनी के पीछे अपने अस्तित्व की तलाश में..
जवाब देंहटाएंमनीष जी.. चाँद प्रेमी है ..प्रियतम है ..प्रीत की रीत जानता है ..इसीलिए तो शिकायत है ..वो एक शेर है न
हटाएंमेरे साथ तुम भी दुआ करो, यूँ किसी के हक में बुरा न हो
कहीं और हो न ये हादसा, कोई रास्ते में जुदा न हो
चाँद को भी तो ये दस्तूर निभाना चाहिए
चाँद को नसीहत और चेतावनी देती आपकी कविता अच्छी लगी. चाँद पर दो कविताएं मेरी भी देखें:
जवाब देंहटाएंhttp://poetrystream.blogspot.com/2011/11/teardrops-of-moon.html
http://poetrystream.blogspot.in/2011/06/blog-post.html
धन्यवाद.
शुक्रिया हेमंत जी
जवाब देंहटाएंवाह...........वाह................
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अनु
हटाएं