मैं स्त्री
एक किताब सी
जिसके सारे पन्ने कोरे हैं
कोरे इसलिए
क्योंकि पढ़े नहीं गए
वो नज़र नहीं मिली
जो ह्रदय से पढ़ सके
बहुत से शब्द रखे हैं उसमे
अनुच्चरित.
भावों से उफनती सी
एक किताब सी
जिसके सारे पन्ने कोरे हैं
कोरे इसलिए
क्योंकि पढ़े नहीं गए
वो नज़र नहीं मिली
जो ह्रदय से पढ़ सके
बहुत से शब्द रखे हैं उसमे
अनुच्चरित.
भावों से उफनती सी
लेकिन अबूझ .
बातों से लबरेज़
मगर अनसुनी.
किसी महाकाव्य सी फैली
पर सर्ग बद्ध
धर्मग्रन्थ सी पावन
किन्तु अनछुई .
तुम नहीं पढ़ सकते उसे
बांच नहीं सकते उसके पन्ने
क्योंकि तुम वही पढ़ सकते हो
जितना तुम जानते हो .
और तुम नहीं जानते
कि कैसे पढ़ा जाता है
सरलता से,दुरूहता को
कि कैसे किया जाता है
अलौकिक का अनुभव
इस लोक में भी ....
बातों से लबरेज़
मगर अनसुनी.
किसी महाकाव्य सी फैली
पर सर्ग बद्ध
धर्मग्रन्थ सी पावन
किन्तु अनछुई .
तुम नहीं पढ़ सकते उसे
बांच नहीं सकते उसके पन्ने
क्योंकि तुम वही पढ़ सकते हो
जितना तुम जानते हो .
और तुम नहीं जानते
कि कैसे पढ़ा जाता है
सरलता से,दुरूहता को
कि कैसे किया जाता है
अलौकिक का अनुभव
इस लोक में भी ....
क्योंकि तुम वही पढ़ सकते हो
जवाब देंहटाएंजितना तुम जानते हो .........यही सच है.
कोई अपनी नज़र से हमें देखेगा,
एक कतरे को समंदर नज़र आये कैसे.
तूलिका......सरलता से दुरूहता को पढ़ना....यह हुनर सबको कहाँ आता है?
इस लोक में अलौकिक का अनुभव..................सीधा सा सिंपल सा रास्ता है....प्यार हो जाए किसी से.
सरलता का हुनरमंद होना सबसे मुश्किल है निधि ...सूफी दर्शन ये कहता है कि किसी भी सरल या गूढ़ ज्ञान को व्यक्ति अपनी समझ के हिसाब से ग्रहण करता है ..पूरा और सटीक ज्ञान हासिल करने के लिए सदगुरु का होना आवश्यक है जो हमें सत्य तक पहुँचायेगा ...मैं मानती हूँ कि निश्छल प्रेम वो सदगुरु है जो स्त्री के सत्य तक पहुंचाता है...इस लोक में अलौकिक का अनुभव कराता है . सच कहती हो
हटाएंकोई अपनी नज़र से हमें देखेगा,
एक कतरे को समंदर नज़र आये कैसे.
भावों से उफनती सी
जवाब देंहटाएंलेकिन अबूझ .
बातों से लबरेज़
मगर अनसुनी.
...इस मौन की भाषा अद्भुत है ,विरले ही पढ़ सकते हैं इसे ,जिन्हे आता है पढ़ना हृदय की भाषा ,किसी धर्मग्रंथ सा पावन , लोक में रहकर भी आलौकिक , पढ़ लिया तो सरल नहीं तो बेहद दुरूह .... बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति .... ऐसा ही तो होता है स्त्री मन .... बधाई मित्र
मैं मानती हूँ स्त्री को एक किताब सा ...जैसे किसी किताब में उल्लिखित ज्ञान को पढ़ने वाला हर व्यक्ति अपनी अपनी समझ के हिसाब से ग्रहण करता है ..ठीक वैसे ही स्त्री भी पढ़ी जाती है देखने वाले की नज़रों से ....सही है न ...
हटाएंजाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी